सभी शिक्षित व सभ्य बनें, जन-जन का कल्याण करें”, के सर्वमान्य सिद्धान्त के लिए शिक्षा एक अत्यन्त सशक्त एवं प्रभावकारी माध्यम है। बौद्धिक सम्पन्नता एवं राष्ट्रीय आत्म निर्भरता की आधारशिला शिक्षा ही है।
वर्ष 1972 तक शिक्षा निदेशक के अन्तर्गत प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा प्रशिक्षण स्तर की शिक्षा संचालित थी। शिक्षा के बढ़ते कार्यों, विद्यालयों एवं नये-नये प्रयोगों के कुशल संचालन तथा कार्यक्रम को अधिक गतिशील एवं प्रभावी बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1972 में शिक्षा निदेशालय के विभाजन का निर्णय लिया गया, जिसके अन्तर्गत शिक्षा निदेशक (बेसिक), शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) एवं उच्च शिक्षा निदेशक, के पदों का सृजन कर इसे तीन खण्डों में विभाजित किया गया | किन्तु 1975 में बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा का एकीकरण कर दिया गया, जबकि उच्च शिक्षा विभाग यथावत अलग चलता रहा। वर्ष 1985 में बेसिक शिक्षा को अधिक प्रभावी एवं गतिशील बनाने के लिए पृथक से बेसिक शिक्षा निदेशालय की स्थापना की गयी ।
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा, उर्दू एवं प्राच्य भाषा, राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, साक्षरता एवं वैकल्पिक शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान, मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण तथा शोध कार्यक्रमों को अधिक गतिशील और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से अलग-अलग निदेशालय स्थापित किये गये हैं।
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